सबसे बड़ा डॉन सबसे ऊपर बैठा है, वो कौन है सब जानते हैं

सबसे बड़ा डॉन सबसे ऊपर बैठा है, वो कौन है सब जानते हैं


सोशल मीडिया पर हर बात का एक ही जवाब है। तुम्हारा वीडियो, मेरा वीडियो। आप कोई बात कहेंगे, वे जवाब में एक स्क्रीनशॉट, एक वीडियो, एक कतरन भेज देंगे।
पोस्ट ट्रूथ दौर में समझदारी की बॉटम लाइन यही है कि सबके पास अपना-अपना तथ्य है। अपना-अपना विश्लेषण। आपने पीएचडी करके कोई ज्ञान हासिल किया है और आपको लगता है कि आप इस मुद्दे को समझते हैं तो ये आपकी अपनी सोच है। सामने वाले के लिए आपका सारा ज्ञान एक सिंगल तथ्य/विचार है। उसके पास आया व्हाट्सऐप मैसेज भी उसके लिए सिंगल तथ्य/विचार है। उसके लिए दोनों बराबर है। वह संख्या से चीज़ों को तौलता है। आपके पास तीन सूचनाएं हैं, तो उसने भी तीन मैसेज पढ़े हैं और दो वीडियोज़ अलग से देखे हैं। वो ख़ुद को आपसे आगे मान बैठेगा।


सांप्रदायिकता, नेशन स्टेट, पुलिस की भूमिका, सरकार का कॉनसेप्ट, दंगा और हिंसा का मॉडल, दक्षिणपंथ, हेट स्पीच, धार्मिक पहचान, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, राजनीतिक पार्टी, अदालत की भूमिका से लेकर भीड़ के मनोविज्ञान तक हर चीज़ का आगा-पीछा समझाना पड़ेगा।
इतिहास बताना पड़ेगा, राजनीतिक आख्यान बताना पड़ेगा। आप ख़ूब पढ़कर आएंगे, वो आपको एक व्हाट्सएप मैसेज से निरुत्तर कर देगा। आप खीझेंगे, वो इसे अपनी जीत समझेगा।
इसलिए तनाव भरे वक़्त में सोशल मीडिया पर बहस करने से बचिए। ये और तनाव देगा। दुनिया की यूनिवर्सिटीज़ में इस पर शोध हो रहे हैं कि सोशल मीडिया ने यूजर्स को कैसे डिप्रेस्ड किया है। आप दिन में रोज़ाना 5-6 बार सिर्फ़ इसी वजह से इरिटेट हो जाते होंगे। जांची-परखी सूचनाओं को साझा कीजिए। सरकार से सवाल कीजिए। सुविधा के हिसाब से इशारों पर लंपट, क्रूर और शिथिल होने वाली पुलिस से सवाल कीजिए। ये सब इन्हीं का किया-कराया है। सबसे बड़ा डॉन सबसे ऊपर बैठा है। वो कौन है सब जानते हैं।